हर बच्चा एक चंचल कन्हैया है,
खूबसूरत सपनों की सुगन्धित पुरवैया है।
बाहर से कच्ची मिटटी का ढेला है,
किंतु भीतर असीम आत्मबल का मेला है।
हे शिक्षक जागो! अपने कर्तव्य से मत भागो,
इन बच्चों से ही देश का भविष्य दिव्य है।
इसलिए इनके बुनते हुए सपनों को संवारों,
यही तुम्हारा धर्म है, और यही राष्ट्र-सेवा है।
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1 comment:
Hope this message reaches to as many teachers as possible! AND, let ALL OF THE AWAKEN!
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